जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल करण कृपाल । दीनन के दुख दूर करि, कीजै नाथ निहाल ॥
For Vidhi,
Email:- info@vpandit.com
Contact Number:- 1800-890-1431
॥ दोहा ॥
जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल करण कृपाल ।
दीनन के दुख दूर करि,
कीजै नाथ निहाल ॥
जय जय श्री शनिदेव प्रभु, सुनहु विनय महाराज ।
करहु कृपा हे रवि तनय,
राखहु जन की लाज ॥
॥ चौपाई ॥
जयति जयति शनिदेव दयाला ।
करत सदा भक्तन प्रतिपाला
॥
चारि भुजा, तनु श्याम विराजै ।
माथे रतन मुकुट छबि छाजै
॥
परम विशाल मनोहर भाला ।
टेढ़ी दृष्टि भृकुटि
विकराला ॥
कुण्डल श्रवण चमाचम चमके ।
हिय माल मुक्तन मणि दमके
॥
कर में गदा त्रिशूल कुठारा ।
पल बिच करैं अरिहिं
संहारा ॥
पिंगल, कृष्णों, छाया नन्दन ।
यम, कोणस्थ, रौद्र, दुखभंजन ॥
सौरी, मन्द, शनी, दश नामा ।
भानु पुत्र पूजहिं सब
कामा ॥
जा पर प्रभु प्रसन्न ह्वैं जाहीं ।
रंकहुँ राव करैं क्षण
माहीं ॥
पर्वतहू तृण होई निहारत ।
तृणहू को पर्वत करि डारत
॥
राज मिलत बन रामहिं दीन्हयो ।
कैकेइहुँ की मति हरि
लीन्हयो ॥
बनहूँ में मृग कपट दिखाई ।
मातु जानकी गई चुराई ॥
लखनहिं शक्ति विकल करिडारा ।
मचिगा दल में हाहाकारा ॥
रावण की गतिमति बौराई ।
रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई ॥
दियो कीट करि कंचन लंका ।
बजि बजरंग बीर की डंका ॥
नृप विक्रम पर तुहि पगु धारा ।
चित्र मयूर निगलि गै हारा
॥
हार नौलखा लाग्यो चोरी ।
हाथ पैर डरवाय तोरी ॥
भारी दशा निकृष्ट दिखायो ।
तेलिहिं घर कोल्हू चलवायो
॥
विनय राग दीपक महं कीन्हयों ।
तब प्रसन्न प्रभु ह्वै
सुख दीन्हयों ॥
हरिश्चन्द्र नृप नारि बिकानी ।
आपहुं भरे डोम घर पानी ॥
तैसे नल पर दशा सिरानी ।
भूंजीमीन कूद गई पानी ॥
श्री शंकरहिं गह्यो जब जाई ।
पारवती को सती कराई ॥
तनिक विलोकत ही करि रीसा ।
नभ उड़ि गयो गौरिसुत सीसा
॥
पाण्डव पर भै दशा तुम्हारी ।
बची द्रौपदी होति उघारी ॥
कौरव के भी गति मति मारयो ।
युद्ध महाभारत करि डारयो
॥
रवि कहँ मुख महँ धरि तत्काला ।
लेकर कूदि परयो पाताला ॥
शेष देवलखि विनती लाई ।
रवि को मुख ते दियो छुड़ाई
॥
वाहन प्रभु के सात सजाना ।
जग दिग्गज गर्दभ मृग
स्वाना ॥
जम्बुक सिंह आदि नख धारी ।
सो फल ज्योतिष कहत पुकारी
॥
गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं ।
हय ते सुख सम्पति उपजावैं
॥
गर्दभ हानि करै बहु काजा ।
सिंह सिद्धकर राज समाजा ॥
जम्बुक बुद्धि नष्ट कर डारै ।
मृग दे कष्ट प्राण संहारै
॥
जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी ।
चोरी आदि होय डर भारी ॥
तैसहि चारि चरण यह नामा ।
स्वर्ण लौह चाँदी अरु
तामा ॥
लौह चरण पर जब प्रभु आवैं ।
धन जन सम्पत्ति नष्ट
करावैं ॥
समता ताम्र रजत शुभकारी ।
स्वर्ण सर्व सर्व सुख
मंगल भारी ॥
जो यह शनि चरित्र नित गावै ।
कबहुं न दशा निकृष्ट
सतावै ॥
अद्भुत नाथ दिखावैं लीला ।
करैं शत्रु के नशि बलि
ढीला ॥
जो पण्डित सुयोग्य बुलवाई ।
विधिवत शनि ग्रह शांति कराई
॥
पीपल जल शनि दिवस चढ़ावत ।
दीप दान दै बहु सुख पावत
॥
शनि सुमिरत सुख होत
प्रकाशा ॥
करत पाठ चालीस दिन,
हो भवसागर पार ॥
Write a public review